सिखाया गया हज का पूरा तरीका।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
जिले के हज यात्रियों को मियां बाज़ार स्थित मियां साहब इमामबाड़ा में तहरीक दावते इस्लामी इंडिया की ओर से अंतिम चरण की हज ट्रेनिंग दी गई। हज के फराइज, हज के पांच अहम दिन व हज का अमली तरीका बताया गया। ट्रेनिंग के दौरान तल्बिया यानी 'लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक' का अभ्यास जारी रहा। थ्रीडी एनिमेटेड वीडियो, एलईडी व अन्य तरीकों से हज ट्रेनिंग दी गई।
हज ट्रेनर हाजी मोहम्मद आज़म अत्तारी ने बताया कि हज में सात चीजों की अदायगी पर खास ध्यान देने की ज़रुरत होती है। जो हज के फ़र्ज़ कहलाते हैं। हज के 7 फ़र्ज़ हैं। पहला एहराम, दूसरा नियत, तीसरा वुकूफ-ए-अरफात, चौथा तवाफ-ए-जियारत, पांचवां तरतीब, छठां मुकर्रर वक्त, सातवां निश्चित जगह। इसमें से अगर कोई अदा करने से रह गया तो हज अदा न होगा।
उन्होंने बताया कि हज के पांच दिन अहम होते हैं। 8वीं जिलहिज्जा (इस्लामी माह) पहला दिन है। 8वीं तारीख की रात नमाज-ए-इशा के बाद एहराम पहन कर मक्का शरीफ से मिना के मैदान (पवित्र स्थान) रवानगी होती है। यहां पांच वक्त की नमाज़ें यानी 8वीं जिलहिज्जा की जोहर से लेकर 9वीं जिलहिज्जा की फज्र तक पांच नमाज़ें अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को सूरज निकलने के बाद से मैदान-ए-अरफात (पवित्र मैदान) जाते हैं और सूरज ढ़लने के बाद तक "वुकूफ-ए-अरफात" (यानी मैदान-ए-अरफात में ठहरना) करते हैं। जोहर व अस्र की नमाज़ यहीं अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को अब मगरिब का वक्त हो गया अब यहां से बगैर नमाज-ए-मगरिब पढे़ हाजी मैदान-ए-मुजदलफा (पवित्र स्थान) के लिए निकलते हैं। जिस वक्त मुजदलफा पहुंचते हैं यहां दो नमाज़ें (मगरिब व इशा) तरतीब के साथ एक साथ अदा करते हैं और यहां दुआ और गुनाहों की माफी में रात गुजारते हैं। यहां से हाजी कंकरिया चुनते हैं। रात गुजार कर 10वीं जिलहिज्जा का नमाज़-ए-फज्र पढ़कर सुबह सूरज निकलने के बाद मिना वापस आ जाते हैं और बड़े शैतान को कंकरिया मारते हैं फिर कुर्बानी कराकर सर मुंडाते हैं और अब एहराम से निकल जाते हैं। इसके बाद हज का दूसरा फ़र्ज़ "तवाफ-ए-जियारत" के लिए मक्का शरीफ रवाना हो जाते हैं और मक्का की पवित्र मस्जिद (मस्जिद-उल-हराम) में खाना-ए-काबा का तवाफ करते हैं। तवाफ के बाद सई यानि सफा पहाड़ी से मरवा पहाड़ी और फिर मरवा से सफा सात चक्कर पूरा करते हैं।
उन्होंने कहा कि एक चीज का ध्यान रखना चाहिए की उक्त सारे अरकान इसी तरतीब से होने चाहिए। बहुत सारे हाजी 10वीं तारीख़ को ही "तवाफ-ए-जियारत" कर लेते हैं। याद रहे कि "तवाफ-ए-जियारत" 10वीं की सुबह सादिक से लेकर 12वीं जिलहिज्जा के सूरज डूबने से पहले तक अदा करते हैं।
हाजी आजम ने बताया कि 11वीं व 12वीं जिलहिज्जा को मिना के मैदान में सिर्फ तीन शैतानों को कंकरिया मारनी होती है। सबसे पहले छोटे को फिर मंझले को फिर बड़े शैतान को कंकरिया मारनी होती है। फिर हज की अदायगी पूरी हो जाती है। आखिर में "तवाफ-ए-विदा" अदा किया जाता है। यह वाजिब और लाजिम है।
ट्रेनिंग के अंत में सलातो-सलाम पढ़कर एक व नेक बनने की दुआ की गई। हज पर लिखी किताब 'रफीकुल हरमैन' तोहफे के तौर पर हज यात्रियों को दी गई। हज पर ले जाए जाने वाले सामानों की लिस्ट भी दी गई। ट्रेनिंग में मौलाना रजाउल मुस्तफा मदनी, आदिल अत्तारी, मुख्तार अहमद कुरैशी, जुबैदा खातून, वसीउल्लाह अत्तारी, शहजाद अत्तारी, मो. फरहान अत्तारी, मो. शम्स, मो. खुर्शीद, सलीम अत्तारी, मो. सारिक सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
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