जाड़े के मौसम में भी टूटे दरवाजे वाले एम्बुलेंस में ले जाते है मरीज
रसड़ा(बलिया)। लोंगो को इलाज के लिए अस्पताल लाने के लिए जिस उद्देश्य से 108 व 102 एम्बुलेंस सेवा को लागू किया गया। आज स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की उदासीनता से मरीजों के लिए परेशानी का शबब बन कर रह गई है। क्योंकि एम्बुलेंस के दरवाजे, टायर व अन्य पार्टस इतने जर्जर हो गए हैं कि एम्बुलेंस खतरा हो गए हैं। नतीजा है कि जाड़े के मौसम में भी मरीजों टूटे खिड़की दरवाजे वाले इस वाहन से अस्पताल आना पड़ रहा है। बताते चलें कि स्वास्थ्य विभाग ने एम्बुलेंस सेवा पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण वेतन न मिलने से पहले के चालकों ने नौकरी छोड़ घर का रुख कर लिया। नए लोंगो को पुनः काम पर लगाया गया है। किन्तु मेंटेनेंस पर ध्यान न दिए जाने से एम्बुलेंस की संख्या कम हो गयी है। और जो चल रहे हैं वे भी खटारा हो गए हैं। अब जाड़े के दिनों में यदि एम्बुलेंस का दरवाजा खिड़की टूटा हो तो मरीजों को कितनी दिक्कत होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। किन्तु रसड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कुछ एम्बुलेंस ऐसे ही मरीजों के परेशानी दे रहे हैं। इस सम्बंध में क्षेत्रीय समाज सेवियों ने इसके पीछे जन प्रतिनिधियों व अधिकारियों दोनों को दोषी ठहराते हुए। एम्बुलेंस सेवा को स्वस्थ सेवा के रूप में विकसित करने की मांग की है। उनका आरोप है कि यदि जन प्रतिनिधियों व समाजसेवियों ने नाम कमाने के स्थान दान की परंपरा पर ध्यान दिया होता तो शायद एम्बुलेंस सेवा की हालत दयनीय नहीं होता।
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