महावीर घाट स्थित गायत्री शक्तिपीठ के प्रांगण में एक से चार जनवरी तक होने वाले108 कुन्डीय गायत्री महायज्ञ के पहले दिन हजारों के संख्या में गायत्री परिजनों ने गायत्री शक्तिपीठ पहुंचे।
जहाँ शक्तिपीठ प्रमुख विजेंद्र नाथ चौबे ने मुख्य अतिथि नगर कोतवाल बालमुकुंद मिश्रा व बीचलाघाट चौकी इंचार्ज अमरजीत यादव को तिलक लगाकर स्वागत किया।उसके बाद विश्व कल्याण के लिए मुख्य अतिथि ने ध्वजारोहण किया।
उसके बाद आगे-आगे नौ कन्याएं पीतल का कलश लिए बढ़ने लगी।गायत्री माता स्वरुप में कन्या,शिव -पार्वती रुप में रथ में बैठी कन्याओं ने बड़े ही उत्साह के साथ प्रसन्न मुद्रा में मनमोहक दिख रही थी।जैसे पृथ्वी पर सारे देवी-देवता उतर आये हो।शंख नगाड़े व ढोल के बीच मां गायत्री के साथ अन्य देवी-देवताओं के गगन भेदी जयकारों से पूरा शहर गुंजायमान हो गया।महाबीर घाट स्थित गायत्री शक्तिपीठ गंगाजी मार्ग से निकल कर चमनसिंह बाग रोड होते लोहापट्टी-चौक सिनेमा रोड, हनुमान मंदिर, बालेश्वर मंदिर से नया चौक, चित्रगुप्त रोड से भृगु ऋषि के आश्रम पहुंचा।
वहां देव संस्कृत विश्वविद्यालय शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत वेदाध्ययन विभाग के डा.गायत्री किशोर त्रिवेदी, दिनेश पटेल, दयानंद शिववंशी,संगीत के आचार्य श्री हरि चौधरी, मनीष जी व भूषण जी द्वारा देव आवाहन कर कलश पूजन किया गया।वहां से सतीश चंद कालेज होते हुए मालगोदाम, रेलवे स्टेशन,गुदरी बाजार होकर गायत्री शक्तिपीठ पहुंचा।जहाँ कलश स्थापना किया गया।कलशयात्रा में चल रहे श्रधालुओं पर मार्गों में जगह- जगह फूल वर्षा कर स्वागत कर जलपान कराया गया। इस दौरान यज्ञ सुरक्षा दल के साथ पुलिस फोर्स मुस्तैद रहे।
इनसेट-
गायत्री माता के प्राण प्रतिष्ठा वार्षिकोत्सव के अवसर पर 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान शनिवार की शाम देव संस्कृत विश्वविद्यालय शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डा.गायत्री किशोर त्रिवेदी ने कहा कि गायत्री परिवार के जनक पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी का एक मात्र उद्देश्य था कि मनुष्य में देवत्व का उदय हो और धरती पर खुशहाली आये।
इस लिए संपूर्ण देश में नूतन वर्ष पर गृहे-गृहे यज्ञ व गायत्री उपासना का आन्दोलन चलाया।गुरुदेव का मानना है कि आज समाज में जितनी भी विपन्नता, असमानता है उन सबका निदान गायत्री यज्ञ से ही संभव है।बताया कि हमारे धर्म ग्रंथो में गायत्री को सदबुद्धि का देवी कहा गया है और यज्ञ को सत्कर्म का स्वरूप बतलाया गया है।संसार में जितना ही श्रेष्ठ कर्म है वह यज्ञ से ही संपादित होते ऐसा हमारे वेदों में कहा गया है।यज्ञों वै श्रेष्ठ तमं,कर्म अर्थात यज्ञ हमे सतकर्म करने की प्रेरणा देता है।इस दौरान हरिद्वार की टोली में आये संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी, दिनेश पटेल,दयानंद शिववंशी, मनीष जी व भूषण जी सराहनीय योगदान दिया।
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