(नज़म)
लेखिका- शीबा कौसर, आरा,(बिहार)
अगर ये तय है के!
बहार हो या हो खिंजा।
हो सर्द रातें या हो गर्मियां।
भरी दोपहर में चल रहा हो।
या हमनवार रास्तों पर चल रहा हो।
हो बाद- ए- बहारां।
या के मौसम- ए- गिरां।
हो जैसा भी मौसम।
गम होता नहीं कम।
कोई मुफलिस कभी सुकुं पाता नहीं।
गम उसकी जिस्त से जाता नहीं।
तो फिर बेहतर यही।
गम से कर लो दोस्ती।
जब यह दोस्त बन जाएगा।
जिंदगी का सफर यूं रायगां ना जाएगा।
मौसम जो भी हो सहा जाएगा।
और मकसद- ए- जिंदगी को जगा जाएगा!
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