आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने सहजन की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि
सहजन भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इसमें औषधीय गुण हैं। इसमें पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
सहजन अपने विविध गुणों, तथा असानी से उग आने के लिए जाना जाता है। सहजन का पत्ता, फल और फूल सभी पोषक तत्वों से भरपूर हैं जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं। सहजन के पौधे का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है। पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती है और करी में भी इस्तेमाल की जाती है। इसके बीज से करीब 38-40 प्रतिशत तेल पैदा होता है जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल घड़ियों में भी किया जाता है। इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है। सहजन की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश मे असानी से की जा सकती है। पूरे खेत मे न लगा सके तो खेत की मेडो़ पर, बागीचों के किनारे , बेकार पड़ी भूमि मे लगाये। सहजन की प्रमुख किस्में रोहित- 1 (एक साल में दो फसल) ,कोयम्बटूर 2,पी.के.एम- 1 ,
पी.के.एम -2 आदि है।
पौधारोपण के बाद इसमे फूल आने लगते हैं और 8 से 9 महीने के बाद इसकी उपज शुरू हो जाती है। साल में एक से दो बार इसकी फसल होती है। लगातार 4 से 5 साल तक उपज देती है।सहजन की खेती की सबसे बड़ी बात ये है कि ये सूखे की स्थिति में कम से कम पानी में भी जिंदा रह सकता है। कम गुणवत्तावाली मिट्टी में भी ये पौधा लग जाता है। इसकी वृद्धि के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम सटीक है। सहजन के फूल खिलने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान अनुकूल है। बीजारोपण से पहले 50 सेमी. गहरा और 50 से.मी.चौड़ा गड्ढा, 3-3 मीटर की दूरी पर खोद लें।
सहजन के सघन उत्पादन के लिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच की दूरी तीन मीटर हो और लाइन के बीच की दूरी भी तीन मीटर होनी चाहिए। सूर्य की पर्याप्त रोशनी और हवा को सुनिश्चित करने के लिए पेड़ को पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर लगाएं।
पौध रोपड़ से 8 से 10 दिन पहले प्रति पौधा 8 से 10 किलो गोबर की सड़ी खाद डाला जाना चाहिये ।
सहजन के पौधे को ज्यादा पानी नहीं चाहिए। पूरी तरह से सूखे मौसम में शुरुआत के पहले दो महीने नियमित पानी चाहिए और उसके बाद तभी पानी डालना चाहिए जब इसे जरूरत हो। पेड़ तभी फूल और फल देता है जब पर्याप्त पानी उपलब्ध होता है। अगर साल भर बरसात होती रहे तो पेड़ भी साल भर उत्पादन कर सकता है। सूखे की स्थिति में फूल खिलने की प्रक्रिया को सिंचाई के माध्यम से तेज किया जा सकता है।
पेड़ की कटाई-छटाई का काम पौधारोपण के एक या डेढ़ साल बाद ठंडे मौसम में की जा सकती है। दो फीट की ऊंचाई पर प्रत्येक पेड़ में 3 से 4 शाखाएं छांट सकते हैं।
खाने के लिए जब कटाई की जाती है तो फली को तभी तोड़ लिया जाना चाहिए जब वो कच्चा (करीब एक सेमी मोटा) हो और आसानी से टूट जाता हो। पुरानी फली (जब तक पकना शुरू ना हो जाए) का बाहरी भाग कड़ा हो जाता है लेकिन सफेद बीज और उसका गुदा खाने लायक रहता है। पौधारोपण के लिए बीज या तेल निकालने के मकसद से फली को पूरी तरह तब तक सूखने देना चाहिए जब तक कि वो भूरा ना हो जाए। कुछ मामलों में ऐसा जरूरी हो जाता है कि जब एक ही शाखा में कई सारी फलियां लगी होती है तो उसे टूटने से बचाने के लिए सहारा देना पड़ता है।
पत्तियों की चटनी बनाने के लिए पौधे के बढ़ते अग्रभाग और ताजी पत्तियों को तोड़ लें। पुरानी पत्तियों को कठोर तना से तोड़ लेना चाहिए क्योंकि इससे सूखी पत्तियों वाली पाउडर बनाने में ज्यादा मदद मिलती है।
फसल की पैदावार मुख्य तौर पर बीज के प्रकार और किस्म पर निर्भर करता है।
💻Desk news
0 Comments