बलिया। जिले में 19 अगस्त को बलिया बलिदान दिवस बुधवार को धूमधाम से मनाया गया। जिला कारागार का फाटक खुलते ही 'भारत माता की जय’, वंदे मातरम' व 'चित्तू पांडेय अमर रहें' इत्यादि नारों से जेल प्रांगण गूंज उठा। सेनानी, सेनानी आश्रितों, जिला स्तरीय अधिकारी व आम लोगों का हुजूम जेल कैंपस से बाहर निकलकर सेनानी प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित किया गया। हालांकि देश में सबसे पहले आजाद होने वाले बलिया जनपद में कोरोना के चलते पहली बार बलिया बलिदान दिवस सादगीपूर्ण ढंग से मनाया गया।
जिलाधिकारी श्रीहरि प्रताप शाही, एसपी देवेंद्र नाथ सिंह, सेनानी रामविचार पांडेय इत्यादि लोग जेल से बाहर निकले और जिला कारागार में स्थित शहीद राजकुमार बाघ के प्रतिमा पर माल्यार्पण किये। इसके साथ ही पूरे शहर में भ्रमण कर सेनानियों की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया गया।
जनपद के स्वतंत्रता सेनानी बीरबल कुंवर सिंह चौराहा, कलेक्ट्रेट स्थित डॉ भीमराव अंबेडकर संस्थान, स्व0 पंडित रामदहिन ओझा, बाबू मुरली मनोहर जी (टीडी कॉलेज चौराहा) स्व0 चित्तू पांडेय चौराहा, शहीद मंगल पांडेय चौराहा, स्व0 तारकेश्वर पाण्डेय (एससी चौराहा) स्व0 वीर कुंवर सिंह (कदम चौराहा) स्व0 लाल बहादुर शास्त्री चौराहा, स्व0 चंद्रशेखर आजाद स्मारक, शहीद पार्क चौक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धासुमन किया गया। 19 अगस्त 1942 को देश में सबसे पहले बलिया आजाद हुआ था। करो या मरो के रूप में आजादी के लिए बलिया के क्रांतिकारियों अंग्रेजी हुकूमत की चूले हिला दी थी। ब्रितानियों के खिलाफ 09 अगस्त 1942 को शुरू क्रांति की इतनी धधकी कि अंग्रेजों की 19 अगस्त 1942 को तत्कालीन डीएम जे निगम ने जिला जेल में बंद क्रांतिकारियों को छोड़ने का फैसला लिया। जेल का फाटक खुला। चित्तू पांडेय व महानन्द मिश्रा इत्यादि सैकड़ों क्रांतिकारी बाहर निकले। चित्तू पांडेय व महानन्द मिश्रा ने बलिया का शासन अपने हाथ में ले लिया था।
डेस्क न्यूज़
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