बलिया। ‘भाषा भोजपुरी परिभाषा से परीपूर्ण ह, बोले से पहिले एके समझल जरूरी ह, इ ना गवना के पूरी ह, ना सोहागिन के चूरी ह, इ संस्कृत के बेटी ह, हिन्दी से थोरा हेठि ह, कहेले ‘धुरान’, जान कान खोली धरअ
ध्यान, सब भाषा के ऊपर हमार भाषा भोजपुरी ह।
भोजपुरी के इस ठेठ छंदों के माध्यम से लोक संगीत की विघा में अपनी खास पहचान व एक अलग मुकाम बनाने वाले वीरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ वैसे तो हमारे बीच में नहीं रहे, लेकिन भोजपुरी भाषा की प्रगति की खातिर जीवन पर्यन्त उनके द्वारा किये गये अनथक प्रयास भोजपुरिया समाज के लिए आज भी ‘ओज’ का कार्य कर रही है। भोजपुरी लोक विद्या के नारदीय शैली के महानतम लोक गायाक, ‘धुरान’ आज भी अपने उत्कृष्ट व विशिष्ठ गीतों के माध्यम से भोजपुरिया समाज में जिंदा है। मूल रूप से किसान परिवार से तालुकात रखने वाले ‘धुरान’ का वास्तविक नाम वीर बहादुर सिंह था। सदर तहसील के बसंतपुर गांव में सन् 1911 में जन्में ‘धुरान’ के पिता का नाम गया सिंह तथा माता का नाम परकाली देवी था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण पिता ने वीरेन्द्र को गांव के ही प्राइमरी स्कूल में कक्षा चार तक की पढ़ाई करायी तथा आगे की पढ़ाई के लिए सुखपुरा स्थित हरीनंनद सिंह मिडिल स्कूल से दर्जा सात तक पढ़ाई की । तब देश गुलाम हुआ करता था। लेकिन अपने नटखट स्वभाव के कारण वीर बहादुर आगे पढ़ाई करने की बजाय संगीत से नाता जोड़ लिया पेड़ों पर चढ़ना , गुलेल चलाना और फुर्सत के पलों में बांसुरी बजाने का शौक रखने वाले वीरेन्द्र युवावस्था में अंग्रेजी हुकुमत में सिपाही की नौकरी करने लगे। लेकिन लोक गायकी का ऐसा जूनुन उनके सिर चढ़ा कि सिपाही की नौकरी छोड़ सारा जीवन भोजपुरी को समर्पित कर दिया। गांव के लोगों के बीच ही रहना, रियाज करना और वही से भोजपुरी लोक गायकी की शुरूआत ने वीर बहादुर सिंह को कब तलक वीरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ बना दिया यह किसी को पता ही नही चला।
दसअसल धुरान भोजपुरी लोक संगीत से जुड़ी विधाओं के महारथि थे। लोक गायन के क्षेत्र में इन्होंने एक अपनी अनूठी शैली विकसित की थी। भक्ति प्रसंग के साथ-साथ सामाजिक, समसामयिक विषयों की गायकी की इनमें अद्भुत क्षमता थी। चईता गायन के ये भीष्म पितामह कहे जाते थे। एक खास गुण जो इन्हें अन्य कलाकारों से अलग स्थपित करता था वह था स्वरचित रचनाओं का गायन। आरा, छपरा, सिवान, बक्सर, भभुआ, कैमुर, बलिया के अलावा धुरान ने कलकत्ता, दिल्ली ,मुम्बई, अहमदाबाद, भिलाई, पटना आदि अनगिनत स्थानो पर अपने हुनर का लोहा मनवाया था। इनके कार्यक्रमों के आयोजन में भोजपुरीया समाज के मेहनतकश लोगों का अहम योगदान रहता था। विराट व्यक्तित्व व गायन की अनूठी छवी के कारण ही सन् 1963 में भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर ने एक कार्यक्रम के दौरान विरेन्द्र सिंह को ‘धुरान की उपाधि से नवाजा था जो आजिवन या यू कहें की बाद में इनकी पहचान बन गया। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी आग्रह पर उनके गांव सिवान जनपद के जीरादेयी गांव में भी अपने हुनर का जलवा बिखेरा था।
अपनी मेहनत व लगन की बदौलत ‘धुरान’ ने भोजपुरी भाषा व लोक विद्या की ऐसी सेवा की जिसने भोजपुरिया समाज पर अमिट छाप छोड़ दी। अपने जीवन में उन्होने दर्जनों शिष्यों को नरिदोय संगीत की सफल शिक्षा दी। आजीवन फक्कड़ की जिंदगी व्यतीत करने वाले ‘धुरान’ जीवन के अंतिम दिनों तक भोजपुरी लोक विद्या की सेवा करते रहे। खाली समय में शिष्यों की झुंड के बीच घिरे रहाना व साइकिल चलाना ‘धुरान’ का शगल रहा। लेकिन विधि के विधान के तहत नियत वह पल भी आया जिसने भोजपुरी संगीत की अमिट निशानी को समाज से जुदा कर दिया। ‘धुरान’ 01 मार्च 2017 को परलोक सिधार गये। लोकिन अपनी मधुर व विशिष्ट आवाज की बदौलत वह आज भी हमारे बीच जिंदा है और भावी पीढी का मार्गदर्शन करते नजर आ रहे है।
इनसेट
‘धुरान’ स्मृति महोत्सव का आयोजन कल
बलिया। विरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ लोक सांस्कृतिक सेवा संस्थान के तत्वावधान में प्रसि( लोक गायक स्व0 विरेन्द्र सिंह धुरान के जयन्ती के अवसर पर 13 मार्च मंगलवार को सांय 5 बजे सें बसन्तपुर में धुरान स्मृति महोत्सव का आयोजन रखा गया है। संस्था के सचिव व धुरान के पौत्र अनुज कुमार सिंह ने कार्यक्रम के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताया कि 13 मार्च को धुरान स्मृति महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बसन्तपुर के कुलपति योगेन्द्र सिंह द्वारा ‘धुरान’ पर तैयार स्मारिका विमोचन किया जायेगा। साथ ही दर्जनों भोजपुरी गायकों द्वारा ‘धुरान’ महोत्सव को नयी सांस्कृतिक ऊचांई प्रदान की जायेगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से गोपाल राय, विष्णु ओझा, आशोक मिश्रा, विकास तिवारी सजय शिवम, बुलेट बाबा, मुन्ना सिंह, रविरंजन राय, बुढा ब्यास, छाई पाण्डेय, तारकेश्वर ठाकुर, शैलेन्द्र मिश्र, सुनिता पाठक , स्वामीनाथ ब्यास, विजय पाठक, ईश्वरदत्त पाण्डेय, केदार सिंह, शिवजी गुप्ता, कन्हैया सिंह, उपेन्द्र यादव , मार्कन्डेय गुप्ता, मनोहर गुप्ता , सुरेन्द्र सिंह, मुनीब साहनी आदि गायकों द्वारा अपनी सहमति व्यक्त की गयी है। कार्यक्रम की सफलता हेतु संस्था के सचिव अनुज सिंह ने जनपद के सभी संस्थाओं , बु(िजीवीयों व लोक कलाकारो सहित आम जनो से धुरान स्मृति महोत्सव में उपस्थित होने का निवेदन किया है।
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