सिकन्दरपुर,बलिया,09जनवरी।तहसील क्षेत्र के डूहा बिहरा के सरयु नदी तट पर स्थित श्री वनखण्डीनाथ (श्री नागेश्वरनाथ महादेव) मठ के तपः पूत परिसर में उक्त मठ के यशस्वी संस्थाध्यक्ष पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारीजी महाराज की कृपा से विश्व कल्याणार्थ आयोजित चालीस दिवसीय 108 कुण्डीय कोटि होमात्मक अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में कर्नाटक से पधारे योगाचार्य स्वामी जयदेव ब्रह्मचारी जी महाराज ने प्रशिशुओं को प्रातः योगाभ्यास कराया। पं० रेवती रमण तिवारी के आचार्यत्व में वेद-मन्त्रोच्चार के साथ आवाहित देवताओं और देवशक्तियों का पूरे दिन पूजनार्चन एवं हवनादि किया गया। सान्ध्य सत्र में उक्त ऐतिहासिक महायज्ञ के स्वत्वाधिकारी पूज्य गुरुदेव श्री मौनी बाबा जी महाराज द्वारा लिखित व संकलित राजसूय महायज्ञ और उसका आध्यात्मिक स्वरूप" नामक पुस्तकका विमोचन भक्तिभूमि श्रीधाम वृन्दावन से चलकर यहाँ पधारे महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी भास्करानन्द जी महाराज ने किया। तत्पश्चात् स्वामी जी ने नित्य की भाँति व्यासपीठ से सारगर्भित शब्दावली में सुधी श्रोताओं को भागवती कथा का रसपान कराया। कहा कि आपकी व्यथा को भगवत्कथा दूर कर सकती है, अन्य कोई उपाय नहीं। सती के मोहजनित अपराध से रुष्ट शंकर सतासी हजार वर्ष समाधिस्थ रहे, उनकी सती प्रतीक्षारत थी। आँखें खुलने पर शम्भु ने सती को सम्मुख आसन दिया, वामांग में नहीं, फिरतो पक्का हो गया कि शम्भु ने सती का त्याग कर दिया। सती ने पति की अवज्ञा कर पिता दक्षके घर अनाहूत ही गयी। माता को छोड़कर सती को सबने व्यंग्यवाण मारा। अपमानित सती योगाग्नि में जल मरी। पदवाकर गर्व में चूर दक्ष ने दामादर्शकर को सन्त सभा प्रयाग में अपशब्द कहा और अपनी यज्ञ में भी नहीं बुलाया तथापि शंकर जी विचलित न हुए उन्होंने सती की मृत्यु का समाचार पाकर दक्ष की यज्ञ सकी यज्ञ का विध्वंस अपने गणों द्वारा करा दिया। दक्ष का सिर भी काट कर बकरे का सिर लगा दिया गया। स्वामी जी ने सुस्पष्ट शब्दों में कहा कि शब्दवाण बहुत घातक होता है, गोली का घाव भर जायेगा जबकि बोली का घाव नहीं भरेगा जैसा कि सती के साथ हुआ। सामाजिक समरसता हेतु सहनशीलता और वाक्संयम जरूरी है। हमारा देश विकासशील है, तथापि यहाँ के लोग अपेक्षाकृत सुखी है, क्योंकि हमारा सूझ है- सादा जीवन उच्च बिचार।' इसके विपरीत विकसित देशों के लोग बहुत दुखी हैं, वहाँ अधिकांश लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। हमारी संस्कृति पूर्णतः समतामूलक है। सर्वे भवन्तु सुखिनः' इस देश की परिभाषा है। माता, पिता, गुरु, बड़े बुजुर्ग और स्त्री पक्ष में पति की आज्ञा की अवहेलना भावी दुःख-दन्द्वों को आमन्त्रण देना है। सुती एक लम्बे अन्तराल तक पति-प्रेम से वञ्चित रही, मरने के बाद हिमाचल गृत पार्वती रूप में जन्मी और तपस्या कर पुनः आशुतोष महादेव को पति रूप में प्राप्त की।द्वादश ज्योतिर्लिङ्गनें के कथा-प्रसंग में वक्ता ने कहा कि यदि सूर्य-चन्द्रमा न रहें तो मात्र आठ मिनट में पूरी दुनिया मिट जायेगी। हमें देवी शक्तियों पर विश्वासपूर्वक उनका समादर करना चाहिए।
0 Comments