Ticker

6/recent/ticker-posts

बलिया के सिकन्दरपुर में मनाई गई महाराजा अहिबरन जयन्ती समारोह


बलिया कस्बा सिकन्दरपुर के नगरा मार्ग स्थित बरनवाल मैरेज हाल में बरनवाल सेवा समिति की ओर से आयोजित महाराजा अहिबरन जयन्ती समारोह में उत्तर प्रदेशीय बरनवाल बैश्य सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष जयप्रकाश बरनवाल बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे।



समारोह की शुरुआत मुख्य अतिथि द्वारा महाराजा अहिबरन जी के चित्र पर माल्यार्पण, पूजन-अर्चन, आरती एवं दीप प्रज्वलन के बाद हुई।
समारोह के आयोजक बरनवाल सेवा समिति ने अपने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि सहित अनेक आमंत्रित अतिथियों को माला पहनाकर ऊनी साल से सम्मानित किया।

इस अवसर पर आप अपने संबोधन में मुख्यातिथि ने बरनवाल समाज की संरचना की चर्चा करते हुए कहा कि आधुनिक इतिहास के 14वीं शताब्दी में मुहम्मद तुगलक के आतंक से जब जबरन धर्म परिवर्तन के कारण, अधिकांश बरनवाल जाति के लोगों ने अपना घर छोड़ गांवों को आसरा बनाना ज्यादे मुफीद समझा था, और घीरे-धीरे विभिन्न रोजगार के साथ फैलते गये। उस समय यातायात और डाक के साधन आज की तरह नही थे। इसके कारण उनके आपस में सम्बन्ध टूटते गये।

  आगे कहा कि पश्चिमी उप्र के बरनवालों ने सबसे पहले 1895 में सहारनपुर में चतुर्थ बरनवाल बैश्य सम्मेलन किया। लाला भगवती प्रसाद ‘‘बरन‘‘, मुशी दुर्गा प्रसाद मुरादाबाद ने पूरब और पश्चिम के बरनवालों से पत्र ब्यवहार करना शुरु किया। और बासुदेव प्रसाद, बाबू गंगा प्रसाद रईश रसड़ा, बलिया कोठी में गौरी शंकर, लालजी रईश रसड़ा की अध्यक्षता में हाजीपुर, मुगेर, रसड़ा, जाफराबाद, सहसराव, आजमगढ़, मऊ, बनारस, बुलन्द शहर, सम्भल, सराय तरीन, तथा मुरादाबाद से बरनवालों को शामिल करने की बात हुई और उस बैठक में श्री भारतवर्षीय बरनवाल वैश्य सभा का गठन हुआ था।
 उन्होंने कहा कि इतिहास के अनुसार महाराजा अहिबरन बुलन्द शहर के राजा थे। जिनका प्राचीन नाम बरन था। वह एक सूर्यवंशी राजपूत थे। रिकार्ड के अनुसार इसका इतिहास करीब 1200 वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना अहिवरन नाम के राजपूत ने की थी। बुलन्द शहर पर उन्होने बरन टावर की नीव रखी थी। राजा अहिवरन ने बुलन्द शहर में एक सुरक्षित किले का निर्माण भी कराया था। जिसे ऊपर कोट कहा जाता रहा है। इस किले के चारों ओर सुरक्षा के लिए नहर का निर्माण भी था। जिसमें इस ऊपर कोट के पास से ही काली नदी के जल से इसे भरा जाता था। राजा अहिबरन ने इस सुरक्षित कोट में अपनी आराध्या कुल देवी मां काली के भब्य मंदिर की स्थापना की थी।अंत में उन्होने जयन्ती की सभी को बधाई एवं शुभकामनाए देते हुए प्रत्येक वर्ष समारोह भब्य तरीके से मनाने की अपील की।
    कार्यक्रम के दौरान बरनवाल समाज के बच्चों ने विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया। समारोह में बरनवाल समाज के महिला, पुरुष व बच्चे सैकेड़ों की संख्या में मौजूद रहे।

Post a Comment

0 Comments