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मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

 




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🌹 🌹 *मज़हब नहीं सिखाता*
      *आपस में बैर रखना* 🌹🌹

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए ,,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए ।।

जिसकी ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर ,,
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए ।।

आज़ भी बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी ,,
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए ।।

प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए ,
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए ।।

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा ,,
हम रहें भूखे तो तुझसे भी न खाया जाए ।।

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे ,,
मेरे आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए ।।

गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी ,,
ऐसे माहौल में अमन-चैन को बुलाया जाए।।।

       🌄🌄  भारती ✍️✍️✍️


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