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तीर्थों के प्रसाद का जो फल मिलता है वही फल प्राप्त होगा:-जीयर स्वामी



बैरिया बलिया :-(शकील खान).भक्ति मार्ग सरल है, सुगम है, सुलभ है, सहज है। इसमें किसी की देने लेने की बात नही है। हम जो भी करते हैं कर्म, व्यवहार को परमात्मा के प्रति भावित करके, समर्पित करके तब उस कर्मों को अपना मानना यही भक्ति योग है। 


जब सुंदर मकान बनवा कर जब उसमें सोते हैं तो भगवान का नाम लेकर, उनको याद करके सोइए कि भगवान आपने हमें सुंदर मकान दे दिया। मंदिर में दर्शन करने का जो फल है वहीं फल घर में सोने से मिलेगा।

 
घर में जो भोजन बनाते हैं उसमें तुलसी पत्र डाल करके भगवान को भोग लगाया करके पाइए आनंद रहेगा।


 तीर्थों के प्रसाद का जो फल मिलता है वही फल प्राप्त होगा।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी सन्त त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्य जीयर स्वामी जी ने क्षेत्र के जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान कही। स्वामी जी ने कहा कि नया कपड़ा पहनने के समय परमात्मा को याद करते हुए पहनीए। प्रभु आपने दिया। 


यहीं भक्ति मार्ग है। भक्ति मार्ग में घर परिवार इत्यादि अनेक प्रकार के साधनों को त्यागा नही जाता है। बल्कि वस्तु, व्यवस्था, व्यवहार को परमात्मा में समर्पित किया जाता है।जिसने मुरारी की चर्चा नही किया, अर्चा नही किया, गंगाजल का पान नही किया, गीता का स्वाध्याय नही किया वह व्यक्ति संसार में आकर भी मनुष्य कहलाने का अधिकारी नही है। 


अंतिम समय तक पुरूषार्थ का त्याग नही करना चाहिए।


मानव को पांच अर्थ जानना चाहिए। सस्वरूप, अपने  स्वरूप के बारे में। पुरे दुनिया के स्वरूप के बारे में जानकारी हो गया। परंतु अपने स्वरूप को नही जानते। परस्वरूप, उपायस्वरूप, विरोधी स्वरूप, पुरूषार्थ स्वरूप, जीवन में विघ्न बाधा आने के बाद भी अपने कर्तव्य और कर्मों का त्याग नही करना इसी का नाम पुरूषार्थ है। अपने अंतिम क्षण तक भी कभी पुरूषार्थ, कर्म, का त्याग नही करना चाहिए। कभी भी पुरूषार्थ का त्याग नही करना चाहिए।उन्होंने कहा कि जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है।

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