शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में दीन-ए-इस्लाम की मुक़द्दस हस्तियों की याद में महफिल सजी। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक पेश की गई। नवासा-ए-रसूल हज़रत सैयदना इमाम हसन रदियल्लाहु अन्हु, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां, हज़रत सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी, हज़रत इमाम शैख़ अहमद सरहिंदी फारूकी, हज़रत सैयद अली हुजवेरी दाता गंज बख्श, हज़रत मखदूम शाह मीना, हज़रत इमाम बदरुद्दीन ऐनी, हज़रत पीर सैयद मेहर अली शाह अलैहिर्रहमां की रूह को इसाले सवाब किया गया। अवाम के सवालों का जवाब क़ुरआन व हदीस की रोशनी में दिया गया।
मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि आला हज़रत इमाम अहमद रजा खां अलैहिर्रहमां बहुत बड़े मुजद्दिद, मुहद्दिस, मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, भाषाविद्, युग प्रवर्तक तथा समाज सुधारक थे। सिर्फ तेरह साल की कम उम्र में मुफ्ती बने। आला हज़रत दीन-ए-इस्लाम, विज्ञान, अर्थव्यवस्था, गणित, जीव विज्ञान, भूगोल, दर्शनशास्त्र, शायरी, चिकित्सा, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान सहित 55 से अधिक विषयों के विशेषज्ञ थे।
मुख्य वक्ता कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि आला हज़रत ने दीन-ए-इस्लाम, साइंस, अर्थव्यवस्था और कई विषयों पर एक हजार से ज्यादा किताबें लिखीं। आला हज़रत को पचपन से ज्यादा विषयों पर महारत हासिल थी। उनका एक प्रमुख ग्रंथ 'फतावा रजविया' इस सदी के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है। उर्दू जुबान में कुरआन का तर्जुमा 'कंजुल ईमान' विश्वविख्यात है। उलमा-ए-अरब व अज़म सबने आप की इल्मी लियाकत का लोहा माना। आला हज़रत मुसलमानों की आन, बान, शान हैं।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। महफिल में मो. कासिद इस्माइली, अली हसन निज़ामी, मो. अमन, जलालुद्दीन, मास्टर इफ्तेखार, आज़ाद, साहिबे आलम, कुतबुल, अरमान, अयान आदि ने शिरकत की।
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