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नगर में धूमधाम से मनाया गया बारावफात का त्यौहार





सिकन्दरपुर, बलिया।  (इमरान खान) रबीउल-अव्वल की 12 तारीख को इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म दिन के अवसर पर मंगलवार की सुबह नगर के मोहल्ला डोमनपुरा से जुलूस निकाला गया जो मोहल्ला चाँदनी चौक,मोहल्ला इद्रिसिया, मोहल्ला मिल्की,मोहल्ला गंधी, मोहल्ला भिखपुरा ,मोहल्ला बड्ढा, से होते हुए दरगाह के मैदान में समाप्त हुआ। 





जलसे में सर्व प्रथम कुरआन की आयतों की तिलावत की गई ततपश्चात सय्यद सेराजुद्दीन अजमली (प्रोफेसर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) नें तकरीर के माध्यम से लोगों को अम्नो शांति का सन्देश दिया।


इस दौरान सभी मोहल्ले के नातख़्वाहों नें पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन व हयाते जिंदगी को अपनीं नातिया कलाम के माध्यम से लोगों के बीच पेश किया। इस जुलूस में काफी संख्या में अकीदत मन्दों नें हिस्सा लिया। 

वही इस जुलूस का मुख्य केंद्र  मोहल्ला डोमनपुरा में नगर के मोहल्ला मिल्की, मोहल्ला गंधी, मोहल्ला बड्ढा समेत सभी मोहल्ले के लोगों द्वारा इकट्ठा होकर पूरे नगर का भ्रमण कर दरगाह में पहुंच कर समापन किया। 

इस दौरान प्रमुख लोगों में सय्यद सेराजुद्दीन अजमली, सय्यद मिनहाजुद्दीन अजमली, सैयद जिया अजमली, सय्यद कमर अजमली, पूर्व मंत्री मोहम्मद जियाउद्दीन रिजवी, शेख अहमद अली उर्फ संजय भाई, नजरुल बारी, भीष्म यादव, राम जी यादव, अनन्त मिश्रा,संजय जायसवाल, अनिल यादव, जावेद नेता, फैजी अंसारी,सदर इम्तियाज अंसारी आदि लोग मौजूद रहे। 

जुलूस में सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद रहे।।

इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, 571 ई. में इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे माह रबी अल अव्वल की 12 तारीख को अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था। सउदी अरब के मक्का में उनका जन्म हुआ था। उनकी माताजी का नाम अमीना बीबी और पिताजी का नाम अब्दुल्ला था। वे पैगंबर हजरत मोहम्मद ही थे जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले पवित्र कुरान अता की थी। इसके बाद ही पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया। 

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ईद मिलाद-उन-नबी इस्लाम मजहब का प्रमुख त्योहार है, इसे पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

इस्लाम में यह त्योहार बारावफात के नाम से जाना जाता है। इस साल 19 अक्टूबर को ईद मिलाद-उन-नबी त्योहार मनाया गया। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी की पूर्व संध्या पर रातभर दुआएं होती हैं।

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पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के यौमे पैदाइश बारह रबीउल अव्वल को पूरे नगर में आकर्षक सजावट करके तथा रंग बिरंगी फूलों की लड़ियों से रास्तों को दुल्हन की तरह सजाया गया था।

साथ ही लोगों ने अपने घरों पर भी बिजली की झालरें आदि लगाकर आकर्षक सजावट की थी। नगर के अनेक स्थानों पर कहीं काबा शरीफ बनाया गया था तो कहीं मस्जिद हर स्थान की आकर्षक ढंग से सजावट की गई थी।

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को रातभर दुआएं होती हैं,लोग मस्जिदों व घरों में पवित्र कुरान को पढ़ते हैं और नबी के बताए नेकी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।








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