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सेवा निरत जीवन-विश्व का सर्वोत्तम ज्योत -शिखा कौशिक



अंधकार कितना भी घना हो आशा की एक किरण मात्र से ही क्षीण होकर प्रकाश में बदलने लगता है।मनुष्य जीवन में सेवा-भाव वह सर्वोत्तम ज्योत है जिसके फलस्वरूप मनुष्य सेवा सत्कार करके उत्तम जीवन मूल्यों की स्थापना करता है।

एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव से समाजिक एकता,शांति,सद्भावना स्थापित होता है।

मनुष्य एक दूसरे के जीवन में व्याप्त नीरसता, उदासीनता,असहायपन रुपी अंधकार को सेवा परोपकार के जरिए खत्म कर खुशहाली का प्रकाश जीवन में भर सकता है।

सांसारिक जीवन में बड़ी मुश्किल से मानव जीवन की प्राप्ति होती है।मानव जीवन मिलने के उपरांत  यदि हम स्वमं के स्वार्थ ,भोग -विलास,अहंकार को त्याग कर सर्वत्र सेवा सत्कार करने का निश्चय नही किया तो यह प्राप्त मानव जीवन व्यर्थ हो जायेगा ।ऐसे जीवन को निरर्थक माना जाएगा।

सेवा परमो धर्म अर्थात सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं।मानवता ही वह एक मात्र धर्म है जिसमे सेवाकार्य और सहयोग करते वक्त कोई भेदभाव नही किया जाता,न किसी का धर्म पूछा जाता ,न किसी की जाति बस इंसान को इंसान के रूप में ही देखा जाता है।

यदि मानव जीवन से सेवा व् परोपकार की भावना समाप्त हो गई,तो पूरे संसार में चहुँ ओर आरजकता अपना स्थान बना लेगी ।एक दूसरे के प्रति सेवा भाव, सद्भावना और सहयोग के निमित्त ही संसार की गतिविधियाँ निरन्तर विकास की ओर बढ़ती है।यदि समाज कल्याण की भावना का पतन होता है ,तो वहां उसका स्थान स्वार्थ और शोषण ले लेगा,जिसके परिणामस्वरूप संघर्ष के आड़े लड़ाई,वैचारिक मतभेद शुरू हो जाता है इतना ही नही बल्कि धीरे धीरे यह मनुष्य की समाजिक,आर्थिक,मानसिक प्रगति को रोक देता है ।

 ऐसे अनुवांछिक चीजें विकराल रूप धारण कर मानव समाज की अपार क्षति का कारण बनती हैं ,जो दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली जाती हैं ऐसी क्षति की पूर्ति हो पाना मुश्किल सा हो जाता है, न जाने कितने घर,समाज व् देश इसका शिकार हो गए ।इन सबका कारण केवल समाज से परस्पर प्रेम व् सहयोग की प्रवृतियों का नष्ट होना है।

सेवा -भाव जिनके अंदर विद्यमान होता है वह सहर्ष ही समाज व् देश को नई ऊर्जा के साथ नया नजरिया प्रदान करता है।

सेवा की भावना ऐसी भावना है जिसके कारण व्यक्ति के मन से 'मैं' का अहम निकल जाता है और परस्पर प्रेम के साथ 'हम' की भावना आ जाती है।

हम यदि अपने जहन से स्वयं का पृथक अस्तित्व की अवधारणा को त्याग कर खुद को समाज का हिस्सा मानते हुए समाज के अस्तित्व में खुद को सम्मिलित करते हैं तो उनके इस कृत से समाज और समाज से राष्ट्र की उन्नति होना सुनिश्चित है ।

समाज सेवा में आत्म कल्याण की भावना निहित होती है ,हम सभी को मिलकर अपने जीवन को सार्थक बनाने हेतु पारस्परिक प्रेम सद्भावना को बढ़ावा देना चाहिए ,ऐसा करने से हम हमेशा समाज में शांति और उन्नित स्थापित करेंगे।समाज कल्याण का जीवंत उदाहरण कोरोना विभीषिका के दौरान किए जा रहे सेवा कार्य है।

राष्ट्र स्वयंसेवक संघ,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, व् अन्य विचार परिवार से जुड़े संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा इस महामारी में अपनी जान की परवाह किए बिना निरन्तर सेवा कार्य किया जा रहा हैं। सेवा कार्य के निमित्त जरुरतमंदो को जगह जगह कार्यकर्ता द्वारा भोजन पैकेट का वितरण किया जा रहा ताकि इस विभीषिका की स्तिथि में कोई भूखा न सोए । इतना ही नहीं बल्कि रक्तदान जैसा महादान करके न जाने कितने ही लोगों की जान बचाई है और लगातार बचा रहे हैं ।

समय चाहे रात्रि का हो या दिन का वे अनवरत लोगों की इस महामारी में सेवा का संकल्प लिए अस्पतालों में अनवरत लोगों को एडमिट कराने से लेकर उनकी आवश्यक दवाइयों की व्यवस्था तक का जिम्मेदारी ले रहे हैं ताकि इस प्राप्त मानव जीवन में अंदर की मानवता न मरे ,लोग इसे देख प्रेरणा के रूप में लें और खुद भी सेवा करने हेतु आगे बढ़ें ।

इस महामारी में जितनी तीव्रता से अवसाद,एकाकीपन ने लोगों के मन में घर किया है उतनी ही तीव्रता से उसे हटाकर एक आशा ,एक विश्वास भरने का कार्य  भी सेवा कार्य करने वालों ने किया है ।अंततः इस प्राप्त मानव जीवन को व्यर्थ न होने दे ।सेवा सबसे बड़ा धर्म है इसे आत्मसात कर अपने जीवन में सेवा का संकल्प लें। सेवा निरत जीवन विश्व का सर्वोत्तम ज्योत है इसे जलाए रखने का प्रयास करें।


By- 👉अरविंद पाण्डेय

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