डीआरडीओ में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर अनिल कुमार मिश्र के नेतृत्व में बना कोरोना की दवा
By:- इमरान खान
(बलिया) पूरे विश्व मे फैले कोरोना महामारी को लेकर जंहा सभी देश इसकी दवा खोजने में लगे है । वही बलिया जनपद के सिकन्दरपुर तहसील के मिश्रचक गांव निवासी डॉक्टर अनिल कुमार मिश्र के नरेतित्व में बैज्ञानिको ने कोरोना की दवा खोजकर बलिया के नाम को रोशन किया है । आज पूरी दुनिया कोरोना की वैक्सीन बनाने और बांटने में लगी है इस बीच भारत के DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) ने कमाल करते हुए कोरोना की दवा बना दी है। यही नहीं मोदी सरकार ने इसके आपात इस्तेमाल की मंजूरी भी दे दी है। रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को ये जानकारी दी। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भारत के औषधि महानियंत्रक ने डीआरडीओ द्वारा विकसित कोविडरोधी दवा को आपात इस्तेमाल के लिये मंजूरी दे दी है।
कोविड रोधी दवा 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (drug 2-deoxy-D-glucose या 2-DG) डीआरडीओ द्वारा हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ मिलकर विकसित की गई है। रक्षा मंत्रालय के DRDO द्वारा बनाई गई एंटी-COViD ड्रग 2-DG पाउच में पाउडर के रूप में आती है। पाउडर को पानी में घोलकर लिया जाता है। दवा लेने के बाद जब ये शरीर में पहुंचता है तो कोरोना संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है और वायरस को बढ़ने से रोकती है।
डीआरडीओ की माने तो यह दवा कोरोना संक्रमित कोशिकाओं की पहचान करती है फिर अपना काम शुरू करती है। दवा को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह दवा कोरोना मरीजों के लिए रामबाड़ साबित हो सकती है। खासकर ऐसे समय में जब मरीजों को ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। प्राथमिक शिक्षा जूनियर हाई स्कूल सिकन्दरपुर से हाईस्कूल राष्ट्रीय इंटर कालेज सन्दवापुर व इंटरमीडिएट मिर्जापुर से पास किया है ।
उन्होंने साल 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से M.Sc. और साल 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से रसायन विज्ञान विभाग से PhD किया। इसके बाद वह फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। फिर वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। डॉक्टर एके मिश्रा 1994 से 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक भी रहे।
डॉ. अनिल मिश्र 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में शामिल हुए। वह 2002-2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख रहे।
वर्तमान में फिर से डीआरडीओ में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत डॉ. अनिल मिश्र वर्तमान में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन(डीआरडीओ) के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में काम करते हैं। अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजना 'आणविक इमेजिंग जांच का विकास' है।
डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एके मिश्रा ने बताया कि किसी भी वायरस की ग्रोथ होने के लिए ग्लूकोज का होना बहुत जरूरी है। जब वायरस को ग्लूकोज नहीं मिलेगा, तब उसके मरने की चांसेस काफी बढ़ जाते हैं। इस वजह से वैज्ञानिकों ने लैब ने ग्लूकोज का एनालॉग बनाया, जिसे 2डीआरसी ग्लूकोज कहते हैं। इसे वायरस ग्लूकोज खाने की कोशिश करेगा, लेकिन यह ग्लूकोज होगा नहीं। इस वजह से उसकी तुरंत ही वहीं मौत हो जाती है। यही दवा का बेसिक प्रिंसिपल है।
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इसके पहले भी सिकन्दरपुर के लीलकर गांव निवासी एम्स में कार्यरत डॉ संजय राय के नेतृत्व में कोविड शील्ड टिका का निर्माण कर देश मे बलिया ने अपनी अलग पहचान कायम करने में सफलता पाई है ।
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मिश्रचक निवासी विजयशंकर मिश्रा के दूसरे नम्बर के पुत्र डॉ अनिल कुमार मिश्र के दो भाई अशोक मिश्र सुधीर मिश्र अध्यापक है वही अरुण मिश्र घर पर रहते है ।
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