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कृष्णानुजा महामाया विन्ध्यवासिनी का साक्षात विग्रह है उचेडा की भवानी चौबे चण्डी


@आरिफ अंसारी

चिलकहर (बलिया) वैसे तो सनातन धर्मावलंबियों की मान्यता है कि परमब्रह्म की आद्याशक्ति मूल प्रकृति सृष्टि की रचना पालन संहार की मूल कारक है।पराम्बा जगत जननी  सृष्टि के कण कण मे किसी न किसी रूप मे विराजमान है।परन्तु अपने समग्र रुप से धरा पर कही भी आदि शक्ति एक जगह विराजमान है, वह है शक्ति का पावन त्रिकोण पुण्य क्षेत्र विन्ध्याचल (मिर्जापुर) जो विन्ध्यपर्वत श्रृखंला पर धर्म नगरी काशी एवं प्रयाग के मध्य पतित पावनी गंगा के पावन तट पर अवस्थित है। जहां आदि शक्ति अपने समग्र तीनों रूपो महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती के साक्षात  विराजमान है। यही योगमाया अपने भक्त के आग्रह पर बलिया जनपद के रसडा तहसील अन्तर्गत उचेडा गांव मे चण्डी के रूप मे विराजमान है। जहां साल भर विशेष कर चैत्र नवरात्रि मे एकमेला आयोजित होता है जहां दूर दूर से भक्तों की ताता लगता है परन्तु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण भक्त अपनी आराध्या माँ का दर्शन नही कर पाये।
स्थानीय लोगों की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता उचेडा की भवानी चण्डी आदि शक्ति विन्ध्यवासिनी की प्रचण्ड शक्ति एवं उग्र विग्रह है। डा0 ब्रजभूषण चौबे ग्राम प्रधान गोपालपुर एवं सुधीर कुमार पाण्डेय प्रबंधक चन्द्र शेखर बाबा केशव महाविद्यालय संवरा के अनुसार एवं पुराने लोगों एवं दंतकथाओं के अनुसार कात्यायन वंशीय  पंडित महानन्द चौबे जो माता विन्ध्यवासिनी के परम अवराधक थे जो नवरात्रि मे विन्ध्याचल पैदल जाकर माता की आराधना करते थे बुढापे मे उनकी प्रार्थना से आविर्भूत हो माता विन्ध्यवासिनी गांव से दो  किलोमीटर दूर दक्षिण घोर विरावान जंगल मे विग्रह रूप मे प्रगट हुई थी, जो चौबे चण्डी के नाम से आज भी  पुकारी और पूजी जाती  है।

 ऐसी मान्यता है कि भगवती दिन मे तीन रूप धारणा करती है कोई भी आर्तजन अपनी मुरादे लेकर सच्ची भावना से यदि माता के दरवार मे आता है तो माता चण्डी उसके मनोरथ को जरूर पुरा करती है,चौबे चण्डी की जैसी अनोखी मान्यता है, वैसी अनोखी कहानी भी है।भक्तों अवधारणा है कि भगवती प्रातः बालिका, दोपहर मे जवाँ , रात को बृद्धा रूप धारण करती है तो कुछ लोग माता चण्डी मे विन्ध्यवासिनी के तीनो रूप महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती  का दर्शन पाकर अपने को धन्य मानते हैं, शायद यही भवानी के तीन रुप धारण की अवधारणा है।

उचेडा की  चौबे चण्डी कलचुरी (करचोलिया) वंश के क्षत्रियों की कूलदेवी हैँ। इस संबंध मे कलचुरी वंशीय के प्रसिद्ध कवि साहित्यकार डा0 राजेश कुमार सिंह स्वास्थ्य निदेशालय उप्र लखनऊ के अनुसार करचुली वंश के लोग भारत मे जहां भी है कूलदेवी के रूप मे चण्डी माँ की ही पूजार्चन सर्वत्र करते है। डा0 सिंह के अनुसार छत्तीसगढ़ के विलासपुर एक पौराणिक स्थल रतनपुर है जहाँ करचुली वंश के लोग बहुत ज्यादा तादाद आज भी रहते है जो वहा के शासक भी रहे है  वह भी अपने यहां कूल देवी के रूप मे चण्डी की ही पूजा करते है।छत्तीसगढ़ के विलासपुर शहर से 25-30 किलोमीटर दूर रतनपुर जहां 11वीं सदी मे कलचुरी वंश के राजपूतों ने प्रथम शासक नरेश मणिपुर गांव को रतनपुर नामकरण कर अपनी राजधानी बना वहां अपने कुलदेवी चण्डी की विग्रह को स्थापित कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था जो वहां क्षेत्रीय लोगों मे महामाया के नाम से विख्यात है।

क्षेत्र के प्रतिष्ठित करचुली वंशीय भारतीय अटल सेना के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री शशिभुषण सिंह, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व विभाग संघ चालक स्व0आत्मा सिंह के दिल्ली मे कार्यरत ईन्जिनियर पुत्र राजेश दीपक वरिष्ठ समाजसेवी चन्द्र भुषण सिंह चिन्तामणिपुर के ग्राम प्रधान विनय कुमार सिंह,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्यवस्था प्रमुख डाँ वृजराज सिंह एवं ओम सांई चेरिटेबल आई हास्पीटल संवरा के प्रबंध निदेशक डाँ पंकज कुमार सिंह के अनुसार द्वापर मे जिस योग माया को कंस ने मारने के लिए उठाया था जो उसके हाथों से छुट कर आकाश मार्ग से विन्ध्याचल पर्वत भगवती रूप मे स्थापित हो गयी वह पूजनीय महामाया चण्डी ही कृष्णानुजा विन्ध्यवासिनी की अंशभूता माता चण्डी करचुली वंश की कूल देवी है, जहाँ जहाँ भी हमारे वंश के लोग रहते है वहां नाम आकृति कुछ भी रही हो परन्तु हमारे वंशज चण्डी रूप मे ही पूजा करते हैं।

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