उनके उर्स के मौके पर शोमवार की सुबह से ही क्षेत्र भर के आए हुवे नातख़्वाहों ने नातख़्वानी व मिलाद पढ़ा तथा मौलाना सज्जाद नें फ़ातिहा पढ़ा और मुल्क की सलामती की दुआ मांगीं।
रात को ईशा की नमाज के बाद दाता साहब के मजार पर चादर पोशी की गई।
ततपश्चात उनके आस्ताने पर अकीदतमंदों का आना जाना शुरू हो गया जो पूरे दिन भर जारी रहा।शाम होते ही हजारों अकीदतमंदों ने उनके मजारे पाक पर हाजिरी लगाई। चादर पोशी की, फातिहा पढ़ी और खुद के साथ ही कौम व मुल्क में अमन ,शांति, मिल्लत व सलामती के लिए दुआ मांगी। जायरीन द्वारा जेयारत करने व फातिहा पढ़ने का जो सिलिसला शुरू हुआ वह देर रात तक चलता रहा। हाजिरी देने वाले जायरीन में जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम नहीं थी। वहीं पड़ रही कड़ाके की ठंड पर लोगों की आस्था भारी पड़ी, और महिला पुरुष व बच्चों की भीड़ देर रात तक मजार प्रांगण में जमी रही।
इस मौके पर उर्स कमेटी की तरफ से जहां जायरीन के सुविधार्थ नाना व्यवस्थाएं की गई थीं वहीं आयोजित मेला में भी हजारों लोगों ने भाग लेकर अपनी आवश्यकता के सामानों की खरीदारी की। उसी रात मोहल्ला बड्ढा स्थित दरगाह शहवली कादिरी ने मिलाद शरीफ के आयोजन के साथ ही अकीदतमंदों को गुदड़ शरीफ की जियारत कराई जहां देर रात तक काफी भीड़ जमी रही।
गूद्दड़ शरीफ की जियारत का सिलसिला सैकड़ों साल पुराना है।
वहीं हर साल की तरह इस साल भी परंपरागत ढंग से दरगाह हजरत सैयद शाहवली कादरी सिकन्दरपुर के प्रांगण में जियारत गूद्दड़ शरीफ का रात्रि 11:00 आयोजन हुआ जिसमें क्षेत्र व दूर दूर से आए हुवे
अकीदतमंदों नें गूद्दड़ शरीफ की जियारत की। ये सिलसिला सन1658 ईस्वी से परंपरागत ढंग से होता चला आ रहा है।
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