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अपेक्षाओं का शिकार इत्र नगरी में विलुप्त होने के कगार पर गुलाब की खेती




सिकन्दरपुर,बलिया।
14अप्रैल।जिला मुख्यालय बलिया से करीब 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कस्बा सिकन्दरपुर का अतीत काफी गौरवपूर्ण रहा है।अतीत में इसे उद्यानों का नगर कहा जाता था।कारण कि इस उपनगर के चतुर्दिक कभी ब्यापक पैमाने पर गुलाब,चमेली,केवड़ा व बेला के फूलों की खेती होती थी।

इससे यहां का वातावरण न केवल सदैव सुरभित रहता था।बल्कि इन फूलों से कुटीर उद्योग के रूप में गुलाब रोगन,चमेली व बेला के सुगन्धित तेलों सहित इत्र, गुलाब जल,केवड़ा जल ,गुलाब शरकरी,गुलाबकन्द आदि बस्तुएं देशी विधि से तैयार की जाती थीं। तैयार सामानों को बिक्री हेतु शहरोम में भेजा जाता था।कुटीर उद्योग के रूप में निर्मित इन वस्तुओं की ख्याति दूर दूर तक थी।इनकी आपूर्ति न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि बिदेशों में भी होती थी।इससे यहां का लोगों को  जीविकोपार्जन का कोई अन्य साधन  अपनाने की आवश्यकता नहीं थी।घर घर में स्थापित इस उद्योग के चलते यहां के लोग काफी खुशहाल और आत्मनिर्भर थे।जगह जगह फूलों की सत्तियाँ(बिक्री केंद्र)लगती थीं।जहां किसान अपने खेतों में उत्पादित फूल ला कर बेचते थे।
यूरोप की औद्योगिक क्रांति ने इस ब्यवसाय के पूल पर ही कुठाराघात किया।यंत्रीकरण से उत्पादित बिदेशी तेलों व सेंट की प्रतिस्पर्धा से यहां के उत्पादित सामान टिक नहीं सके।साथ ही नकली उत्पादों ने भी इस की बिश्वस्नीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।सिकन्दरपुर के उत्पाद के नाम से बड़े बड़े शहरों में इतने नकली उत्पाद छ गए कि यहां से इनकी आपूर्ति के लिए बाजार ही समाप्त हो गए।आज हालत यह हो गई है कि बाजार की अनुपलब्धता और मांग की कमी के कारण यहां के तेल,फूल व इत्र उद्योग काफी सीमित हो गया है।फूलों की खेती का रकबा काफी घट गया है।उसी अनुपात में उनका उत्पादन भी कम हो गया है।अधीकांश कारखाने बन्द हो जाने से उनमें लगे लोग बेरोजगार हो गए।वे अपनी आजीविका चलाने के लिए दूसरे धंधों में लग गए। अथवा शहरों को पलायन कर गए।कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी प्रोत्साहन और संरक्षण के अभाव में यहां का यह सुप्रसिद्ध उद्योग आज अंतिम सांसें गिन रहा है।

यह तथ्य है कि आज का युग मशीन का युग है।कुटीर उद्योग भी हस्तकला केंद्र न रह कर मशीनों पर आश्रित हो गए हैं।यदि आज विकास करना  तो यहां के गांवों का विकास करना होगा।क्योंकि भारत गांवों में बसता है।इसे गांधी जी ने भी माना था और यही सच भी है।गांवों का विकास तब होगा जब घर घर में उद्योग स्थापित होंगे।किन्तु आज के आर्थिक युग में उद्योग अपने बल पर स्थापित नहीं हो सकते।इसके लिए शासन का सहयोग और संरक्षण आवश्यक है।
शासन को चाहिए कि वह धन की ब्यवस्था कर  फूलों की खेती को उद्योग परक बनाये।मशीन व अन्य उपकरणों के लिए फूलों की खेती में लगे किसानों को सहायता प्रदान करे।तैयार माल के विपणन के साथ ही बाजार उपलब्ध कराए।तभी यहां का तेल व फूल उद्योग एक बार पुनः पल्लवित हो कर लोगों की खुशहाली का प्रतीक बन सकता है।
                                

                      

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