सिकन्दरपुर(बलिया)10अप्रैल।नवरात्र ,चाहे वह वासन्तिक हो या शारदीय,शक्ति पीठों के दर्शन पूजन और आराधना का पर्व है।इसके माध्यम से शक्ति स्वरूपा देवी माँ की उपासना की जाती है।इस काल में पौराणिक देवी पीठों का महत्व बढ़ जाता है।सुदूर अंचलों से आये हुए दर्शनार्थियों की भारी भीड़ इन शक्ति पीठों में देखी जाती है।
इनसे परे कस्बा सिकन्दरपुर में स्थित मां जल्पा का कोई पौराणिक शक्ति पीठ नहीं होते हुए भी ,शक्ति पीठ जैसा ही महत्व रखता है।नगर तथा आसपास के लोग मा जल्पा के प्रति पौराणिक देवी न होते हुए भी उन्ही जैसी श्रद्धा और भक्ति से भरे हुए हैं।
यह तथ्य है कि माँ जल्पा मानवीय हैं।इसी क्षेत्र की कन्या थीं।जिनकी बलि ने मानवी से उन्हें देवी और सभी का आस्थावान बना दिया।
जनश्रुतियों के अनुसार बादशाह सिकन्दर अपने कार्यकाल में तब सामरिक महत्व की दृष्टि से यहां किला का निर्माण करा रहा था।तब मजदूर और मिस्त्री पूरे दिन मेहनत करके किला की दीवालों का निर्माण कर घर चले जाते थे।जबकि रात में निर्मित दीवालें स्वतः ध्वस्त हो जाती थीं।यह सिलसिला जब महीनों तक चला तो बादशाह के चिंतित कारिंदों ने इस बारे में पूरी जानकारी उन्हें पहुंच दिया।जनकारी मिलने के बाद बादशाह के हुक्म पर इस सम्बंध में एक ज्योतिषी से राय ली गई।ज्योतिषी ने अपने विद्या और गणना के बल पर बादशाह के लोगों को सुझाव दिया कि जब तक एक ब्राह्मण और एक शुद्र कन्या की बलि नहीं दी जाएगी।तब तक किला नहीं बन पाएगा। ज्योतिषी की सलाह मिलने के बाद बलि देने हेतु ब्राह्मण और शूद्र कन्या की तलाश बादशाह के कारिंदे करने लगे।अंत में उन्हें दोनों जातियों की कन्याएं मिल गई। कन्याओं के मिलने के बाद निर्माणाधीन किला के पश्चिमी भाग में ब्राह्मण कन्या और पूरब तरफ शुद्र कन्या की बलि दी गई।तब जा कर किले का निर्माण निर्बाध ढंग से पूरा हो सका।
यह तथ्य है कि माँ जल्पा की मान्यता अभ्यदात्री के रूप में है ।जब जल्पा जी के इस मंदिर का निर्माण हुआ था, उस समय यह कस्बा इतना विकसित नहीं था जितना आज है।मन्दिर कस्बे के बाहर मुख्य सड़क से सटे था। बाहर जाने वाले लोग यात्रा सकुशल हो,इस भावना से मा का दर्शन करके जाते थे।बाहर से वापस लौटने पर भी मा का दर्शन करके ही कस्बे में प्रवेश करते थे।आज भी हजारों लोग प्रति दिन प्रातः स्नान करके माँ जल्पा का दर्शन करके ही अपनी दिनचर्या आरम्भ करते हैं। यह तथ्य है कि शुभ विवाह के लिए वर यात्रा आरम्भ करने के पूर्व दूल्हा का परिछावन जल्पा जी के द्वार पर ही होता है।इसी प्रकार शव यात्रा भी माँ के मंदिर की परिक्रमा करने के बाद ही आरम्भ होता है।
कस्बा और आसपास के निवासियों के लिए वे देवी माँ की शक्ति पीठ के रूप में श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बनी हुई हैं।
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