सिकन्दरपुर (बलिया)15 अप्रैल।
मनुष्य स्वाभाविक तौर पर गन्ध प्रिय है।इसी लिए वह अपने उद्यान में सुवासित पुष्प खिलाता है।किंतु पुष्पों के सौंदर्य और जीवन में स्थायित्व नहीं है।पुष्प खिलते हैं और अपना सौरभ बिखेर कर शीघ्र धूल में मिल जाते हैं।किंतु मनुष्य ने इसका भी उपाय खोज लिया।इस सुगन्ध सौरभ को समेट कर इत्र और सुवासित तेलों के रूप में स्थायित्व प्रदान करने लगा।इस के माध्यम से मनुष्य प्रकृति में ब्याप्त सौरभ को समेट कर शीशियों में बंद करके अनुकूल अवसर पर उसे बिखेरने लगा।
यह तथ्य है कि सुगन्ध को शीशी में बंद करने के अतीत में अनेक केंद्र उत्तर भारत में थे।उनमें बलिया जनपद का सिकन्दरपुर कस्बा भी था।किंतु आज मशीनीकरण ने यहां के इस एकमात्र प्रमुख उद्योग को नष्ट प्राय कर दिया है।तेल और इत्र का निर्माण अंतिम सांसें गिन रहा है।जिंदा है तो मात्र गुलाब की खेती और उससे निर्मित गुलाबजल। वह भी सीमित मात्रा में।जो आज भी देश के कुछ शहरों तथा कुछ बिदेशी मुल्कों में भेज जाता है।यह तथ्य है कि अन्य स्थानों के विपरीत यहां के उत्पादित गुलाब के फूल में एक अजीब तरह का मीठा खुशबू होता है।जिसे लोग काफी पसंद करते हैं।यहां के इस फूल को चेहरे पर रगड़ने से न केवल लाली आती है बल्कि मुहांसे में भी यह फायदेमंद है।
गुलाबजल बनाने की विधि
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जहां तक गुलाबजल बनाने के विधि की बात है तो इसका निर्माण आसवन विधि से किया जाता है।इसके लिए एक बड़ा चूल्हा होता है जिसके बगल में ही पानी का एक पक्का हौदा बना दिया जाता है।तांबे का एक पात्र जिसे कुलखन(देग)कहते हैं में एक निश्चित मात्रा में गुलाब का फूल और स्वच्छ पानी भर कर उसका मुहं इस तरह से बन्द कर दिया जाता है कि उसे खौलने पर अंदर का वाष्प इधर उधर न फैले।उक्त देग के ढक्कन के बीच में एक छेद होता है जिसमें बांस की एक नली जिसे जोंगा कहते हैं का एक सिरा फंसा दिया जाता है।जबकि अंग्रेजी के एल टाइप की नली का दूसरा सिरा तांबे के ही सुराहीदार एक अन्य पात्र जिसे भभका कहते हैं,के मुहं में फंसा कर उसे भी भलीभांति बन्द कर दिया जाता है।उक्त भभका चूल्हा के बगल में स्थित पानी से भरे हौदा के अंदर रख दिया जाता है।बाद में चूल्हे में आग जोड़ दी जाती है।गुलाब के फूल और पानी से भरे चूल्हा के ऊपर रखे देग को करीब छः घण्टे तक लगातार आग पर खौलाया जाता है।इस क्रिया से देग में पड़े फूल और पानी खौल कर सुगन्धित वाष्प बनाता रहता है।जो बांस की लगी नली के माध्यम से देग से निकल कर भभका में पहुंच कर सुगन्धित पानी के रूप में परिवर्तित हो गुलाब जल बन जाता है।इस का भी फूल की मात्रा के अनुसार क्वालिटी का निर्धारण किया जाता है।केवड़ा जल,सेंट व इत्र भी बनाने के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।
@मो.आरिफ अंसारी
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