प्राणों की बलि चढाये थे,
रक़्तों से भूमि को सींचे थे,
जब तलक,हलक में सांस रही,
भारत माँ के लिए जीते थे।
सरदार नाम के पहले था,
सरदारी भी तो निभाये थे,
क्रम में वो सर्वप्रथम होकर,
माता को शीष चढाये थे।
जाने वो किस मिट्टी के थे
क्यों उन्हें स्वार्थ न छण भर था?
सबको लालच पद,गौरव का,
और उनका ध्येय समर्पण था।
जिस उम्र में सब खेला करते,
वो हर खेलों को भूले थे,
सरदार भगत सिंह योद्धा थे,
फाँसी भी हँसकर झूले थे।
हाँ!नमन है वीर भगत सिंह को,
और नमन है वीर-प्रसूता को,
निः स्वार्थ वीर भी जन्म लिए,
शत बार नमन भारत माँ को।।
✍️प्रणव मणि त्रिपाठी"अटल
महावीर धाम सोसाइटी
रसड़ा, बलिया
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