सिकंदरपुर (बलिया) सिकंदरपुर बोल बम कांवरिया संग ग्राम पंचायत चक्खान के ग्राम प्रधान श्रीमती शकुंतला देवी के अगुवाई में एक जत्था शनिवार को जलाभिषेक के लिए बाबा बैद्यनाथ के लिए रवाना हो गया। ज्ञात हो कि द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक ज्योतिर्लिंग का पुराण कालीन मंदिर है, जो झारखंड में अति प्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर स्थित है। पवित्र तीर्थ स्थान होने के कारण लोग इसे बैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। यह ज्योर्तिलिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहां पर आने वालों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इसलिए इस लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। इस लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिए घोर तपस्या की और अपने सर काट काट कर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर दिया, एक-एक कर 9 सर चढ़ाने के बाद का दसवा सर भी काटने को हुआ था कि शिव जी प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। उन्होंने उसके दसो सर को ज्यों का त्यों कर दिए। और उसे आशीर्वाद मांगने को कहें तब रावण ने लंका में ले जाकर उस लिंग को स्थापना करने की आज्ञा मांगी। शिव जी ने अनुमति तो दे दी पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वही अचल हो जाएगा। अंततोगत्वा वही हुआ रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक गाय चराने वाले को थमा लघुशंका निवृत्त के लिए चला गया। इधर उस चरवाहे को लिंग बहुत अधिक भारी लग रहा था जिससे वह ज्यादा देर तक अपने सर पर उस लिंग को न रख सका। और अंततः भूमि पर रख दिया। फिर क्या था लौटने पर रावण ने पूरी शक्ति लगा कर उस लिंग को उठाना चाहा लेकिन फिर भी वह उसे उखाड़ न सका। और निराश होकर मूर्ति पर अपना अंगूठा गड़ा का लंका को चला गया। इधर ब्रह्मा विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिव जी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वही उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी। और शिव संतुष्टि करते हुए वापस स्वर्ग लोक को चले गए। संस्कृति और लोक मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनवांछित फल देने वाला है।
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