लोकतंत्र में पत्रकार और पत्रकारिता दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पत्रकार और पत्रकारिता लोकतंत्र से जुड़ी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को निरंकुश होने से बचाती है। पत्रकार और पत्रकारिता समाज और सरकार के बीच एक ऐसा दोहरा आइना माना जाता है जिसमें सरकार और समाज दोनों अपना अपना स्वरूप देखकर उसमें सुधार कर सकते हैं। पत्रकार और पत्रकारिता निंदक और प्रसंशक दोनों भूमिकाएं एक साथ निभाकर समाज और सरकार दोनों को सजग एवं जागरूक करती है।पत्रकार और पत्रकारिता को समाज के दबे कुचले बेजुबान लोगों की जुबान माना जाता है और अन्याय उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज बुलंद करने का एक सशक्त माध्यम माना गया है। पत्रकारिता और पत्रकार का इतिहास बहुत पुराना और सभी युगों में रहा है तथा नारद जी को आदि पत्रकार के रूप मे जाना जाता है। पत्रकारिता व्यवसाय नहीं बल्कि एक समाजसेवा और ईश्वरीय कार्य करने का सशक्त माध्यम मानी गयी है। पत्रकार और पत्रकारिता समाज और सरकार की तस्वीर प्रस्तुत करके वास्तविकता से परिचय कराती है। पत्रकारिता के हर क्षेत्र में पत्रकार की भूमिका निभाना आजकल दुश्वार हो रहा है क्योंकि पत्रकारिता के हर क्षेत्र में समाजद्रोही ,अराजकतत्व, भ्रष्टाचारी सभी पत्रकारों को अपना दुश्मन मानने लगे हैं क्योंकि हर क्षेत्र में पत्रकारिता लोकतंत्र की प्रहरी बनी हुयी है। समाज में आई गिरावट का प्रभाव पत्रकारिता पर भी पड़ा है इसके बावजूद अभी भी हमारे तमाम पत्रकार साथी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पत्रकारिता को गौरान्वित कर सार्थकता प्रदान कर रहें हैं।
यह सही है कि पत्रकारिता क्षेत्र की बढ़ती साख को देखते हुए समाज के विभिन्न राजनैतिक आद्यौगिक आदि क्षेत्रों से जुड़े हैं जिनका धन कमाना और पत्रकारिता की आड़ में हरामखोरी करना होता है। राजनेताओं उद्योगपतियों ठेकेदारों आदि का वर्चस्व इधर पत्रकारिता क्षेत्र में इधर मतलब से ज्यादा बढ़ने लगा है। आजकल पत्रकारिता पत्रकार के विवेक पर नही बल्कि सम्पादक की इच्छा पर तथा सम्पादक की इच्छा सरकार की इच्छा पर आधरित होती जा रही है।
इस समय कुछ लोग पत्रकारों की बुद्धि का अपने हित में दोहन करने लगे हैं। पत्रकारों का इस्तेमाल कन्डोम की तरह किया जाने लगा है और जब निष्पक्ष पत्रकारिता के चलते पत्रकार की जान पर बन आती है तब सभी साथ छोड़कर चले जाते हैं। इसके बावजूद हमारे तमाम पत्रकार साथी अपने कर्तव्यों की इतिश्री यथावत करते आ रहे हैं। यह बात अलग है कि इस कर्तव्य पालन में जरा सी चूक होने पर जान चली जाती है। इधर पत्रकारों पर जानलेवा हमलों का दौर शुरू हो गया है जो सरकार के लिए शर्म की बात है। पत्रकारों को चौथा स्तंभ कहने मात्र से उनकी स्थिति मे सुधार नहीँ आने वाला है लोकतंत्र के और तीनो स्तंभो की तुलना मे चौथे स्तंभ के साथ सौतेला व्यवहार कोई नई बात नही है।
लोकतंत्र के तीन स्तंभ विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका मे भ्रष्ट होने पर इन्हें अगर किसी का डर है तो वह पत्रकार और पत्रकारिता से होता है। यहीं कारण है कि पत्रकार के हित की सिर्फ बात की जाती है उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है। धीरे धीरे पत्रकार को जरखरीद गुलाम बनाने की परम्परा की शुरुआत हो गयी है जिससे पत्रकारिता खतरे में पड़कर बदनाम होने लगी है। कुछ दिन पूर्व पत्रकारों के साथ कई घटनाएँ घटित हुयी लेकिन सरकार ने कोई खास तवज्जो नहीं दिया। पिछली घटनाओं के बाद शासन प्रशासन घडियाली ऑसू बहाकर केवल निन्दा करता रहा जिससे आपराधियो व दबंगों के हौसले लगातार बढ़ते जा रहें हैं।आये दिन पत्रकारों के साथ हो रही दुर्घटनाओं से हमे सीख लेने की आवश्यकता है। शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला पत्रकार हर तरह से दुखी है क्योंकि असली पत्रकार जल्दी वेतनभोगी नही होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकार सारी सुविधाओ से वंचित रहते है आजतक कभी सरकार ने इन इन तहसील ब्लाक व स्तर के पत्रकारों की दीन दशा पर ध्यान नहीं दिया है।
राजनेताओंं, अधिकारियों की दलाली करके दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करना मजबूरी बनता जा रहा है। यही कारण है कि पत्रकारिता का स्तर गिरता और बदनाम होने लगा है। पत्रकारों की जानमाल की सुरक्षा देकर पत्रकारिता को लोकतंत्र के लिये मजबूती देना सरकार का परम कर्तव्य बनता है। दुर्भाग्य इस मामले मे सभी सरकारे पूरी तरह फिसड्डी ही साबित हो रही है।समय है सम्हलिये अपने हक के संघर्ष के लिये आगे बढ़िये वर्ना हमसब एक- एक करके वीरगति को प्राप्त हो जायेंगे
रिपोर्ट-इमरान खान
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