समझ खिलौना मिट्टी का,
हर साल ये खेला करते है।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
पहले सबकी बातें सुनते,
उन बातों को सर पर रखते।
फिर उन बातों को बढ़ा चढ़ा,
ये स्वप्न दिखाया करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
यह ब्राह्मण है, वो क्षत्रिय है,
ये अपना नहीं पराया है।
हर धर्म को पहले तोड़ चुके,
अब धर्म में तोड़ा करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
कुछ पढ़े-लिखे विद्वानों को,
पैसे और पद की लालच दे।
उनकी शिक्षा को खरीद के ये,
कठपुतली बनाया करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
जो सर्दी में गलते रहते,
जो गर्मी में तपते रहते।
सेना की कठिन परिश्रम का,
ये हास्य उड़ाया करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
जब हर बातों का लालच दे,
फिर हम को मूर्ख बनाकर ये।
अपनी कुर्सी मिल जाने पर,
अब रौब दिखाया करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
जो भी कहते खुद की खातिर,
जो भी करते खुद की खातिर।
अरे!इन पैसों में आग लगी,
ना कभी विचारा करते हैं।
हर बात की लालच देकर ये,
हर वक्त सियासत करते हैं।
जरा सोचों,कौन सिखाया है,
इन्हे ऐसा कौन बनाया है।
औकात नहीं इनकी जो ये,
इस कदर रुलाया करते हैं।
हर वक्त की लालच देकर ये,
हर वक्तसियासत करते हैं।
भोला सिंह
सिकन्दरपुर
(बलिया उ० प्र०)
8801344790
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