हर दिन एक बात बनाता है,
हर पल एक ख्वाब सजाता है।
कुछ ख्वाब को अपना मान कर वो,
न जग पता,ना सोता है।
इनसान क्यों इतना रोता है।
खुशियां तो दिल में होती हैं।
न बिकती है बाजारों में,
फिर भी वह सुबह से शाम ढले।
झूठी माला ही पिरोता है,
इनसान क्यों इतना रोता है।
जिसके पास नहीं कुछ भी,
मंदिर के बाहर मागता है।
जिसके पास भरा सभी सुख है,
मंदिर के अंदर मागता है।
क्या चाहता है क्या मागता है,
कुछ और के लालच में आकर।
जो है उसको भी खोता है,
इनसान क्यों इतना रोता है।
इनसान से गर तुम मागते हो,
न देगा तो भी बोलता I
पत्थर से अपना क्या नाता,
पत्थर कब किसका होता I
इनसान क्यों इतना रोता है I
भोला सिंह
सिकन्दरपुर
(बलिया उ०प्र०)
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