बैरिया (बलिया): द्धाबा में किसान परंपरागत खेती से हटकर अब सब्जियों की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस क्षेत्र के टोला बाजराय में सिताबदियारा के किसान पुरेंद्र पांडेय अब बींस की खेती कर रहे हैं। पंजाब और झारखंड राज्य में बहुतायत मात्रा में पैदा होने वाली बींस फली की खेती द्धाबा में भी में पसंद की जा रही है। जेपी के गांव जाने वाले बीएसटी बांध से पांच सौ मीटर की दूरी पर पांच बीघा में बींस की खेती किए किसान पुरेंद्र पांडेय बताते हैं कि बींस फली की खेती करने के लिए सबसे पहले आलू की तरह खेत तैयार किया जाता है।इसके बाद 1.5 फीट की दूरी पर लाइन बनाकर 10 इंच की दूरी पर बीज बो दिए जाते हैं। बीज बोने के बाद नाली बनाई जाती है। बीज बोते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि खेत में पर्याप्त नमी जरूर हो। लोबिया, सेम व चायनीज फली के नाम से विख्यात बींस फली का प्रयोग शादी समारोहों में मिक्स वेज सब्जी में सबसे अधिक होता है। इसकी सब्जी खाने से शुगर की बीमारी कुछ हद तक शांत रहती है किंतु यह सब कब संभव है, जब किसान संबंधित खेत की मिट्टी की जांच कराते हैं। इससे उन्हें यह पता चल जाता है कि उनके खेतों में कितनी मात्रा में कौन से खाद की अवश्यकता है। वह तमाम फसलों की खेती इसी पद्धति से करते हैं।
उन्होंने बताया कि जब मिट्टी में बीज का जमाव हो जाता है तो 15 दिनों के अंदर कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। बींस फली का बीज लखनऊ में 700 रुपए प्रति किलो की दर से मिलता है। एक एकड़ में तीन किलो के आस पास बीज लगाया जाता है। यानी बींस फली की एक एकड़ खेती करने में लगभग छह से आठ हजार रुपए की लागत आ जाती है। इसके अलावा यदि खेत लगान पर है तो खर्च में छह हजार और जोड़ लिया जाता है। अक्टूबर महीने ने बोई जाने वाली यह फसल, जनवरी महीने के अंत में फल देने लगती हैं।
बाजारों में भी है अच्छी मांग
किसान पुरेंद्र पांडेय बताते हैं कि अब बाजारों में भी बींस की अच्छी मांग है। प्रतिदिन की सब्जी के रूप में इसका लोग प्रयोग कर रहे हैं। अभी के समय में भी बींस बाजारों में 30 से 40 रूपए किलो मिल रहा है। प्रयोग के तौर पर उन्होंने यह खेती की है। बताया कि जब वह बींस की बुआई कर रहे थे, तब आसपास के किसान उन पर हंस रहे थे। आज उत्पादन देख बहुत से किसान उनसे बींस की खेती की सीख लेने भी पहुंच रहे हैं।
0 Comments